आपसी नफरत में दलितों ने अमर रिकार्ड बनाया – निखिल सबलानिया
मैंने 15 सालों में डॉ. आंबेडकर जी के विचारों और उनकी पुस्तकों पर इतनी टिप्पणीयां नहीं देखी जितनी एक महीने में ही हमने आपस में लड़ने में फेसबुक पर डाल कर हमारे विभाजन के इतिहास को अमर कर दिया। सही कहा था डॉ. आंबेडकर जी ने कि मुझे पढ़े लिखे लोगों ने ही धोखा दिया। जिन्होंने चार पीढ़ियों से भी डॉ. आंबेडकर जी को नहीं पढ़ा, वह उन्हीं की दिलाई शिक्षा से, उन्हीं के मिशन को चौपट करने में लग गए। हमने क्या सीखा डॉ. आंबेडकर जी और बौद्ध धम्म से? बुद्ध ने सफाई करने वाले सुनीत को संघ में शामिल किया। हमारे संपन्न वर्ग का क्या यह दायित्व नहीं है कि हम पीछे छूट गयों को और अवसर दें। डॉ. आंबेडकर जी का मिशन क्या है? भगवान बुद्ध का मिशन क्या था? क्या मानवता की स्थापना और सुरक्षा के अतिरिक्त भी कुछ और था? स्वार्थ में मानवता नहीं होती। हमने डॉ. आंबेडकर जी से जुड़ कर किस आदर्श की स्थापना की? या हम उस आदर्श के काबिल नहीं थे? क्या हम शुरू से ही झूठे हैं? क्या हम शुरू से ही स्वार्थी थे? हमें आत्मचिंतन की जरूरत है। आग में कूदने की नहीं। बुद्ध ने तो सत्ता छोड़ी। हमें तो सिर्फ अधिकार बांटने हैं। हमें क्यों लगता है कि हम अलग हैं। अब हमारी दोगुनी शक्ति है। एक और एक ग्यारह होते हैं। अब हम न मिलने वाले अधिकारियों को दोनों तरफ से लेंगे। अब हमारी राजनीतिक शक्ती दोगुना होगी ताकि एक के विफल होने पर दूसरी संभाल ले। अब हमारा चिंतन और सक्रियता, दोनो दोगुने होंगे। अब हमारा दलित आदिवासी और पिछड़ा समाज एक पैर पर नहीं बल्कि दोनों पैरों पर खड़ा होकर संतुलित और गतिमान बनेगा। हमें नुकसान में भी फायद उठाने वाला कूटनीतिज्ञ बनना है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि जब हमसे जमींन, जायजाद, खेती, सब छीन लिया तो हमारे पुरखों ने मरी गाय का मांस खाकर भी खुद को जिंदा रखा। हमने इतना कुछ सहा है कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए अब हमारा उद्देश्य बड़ा होना चाहिए। हमें एक बड़े वर्ग को डॉ. आंबेडकर और भगवान बुद्ध की चेतना से जोड़ना है। हमारे सामने समस्याएं बहुत है। दुनिया तकनीक से पूरी पूंजीपतियों के हाथों में जा रही है। हमें उस बदलते भविष्य को रोकना है। हमें अपने वर्ग की नहीं बल्कि भारत और दुनिया की आने वाली समस्याओं के समाधान खोजने हैं। इससे अधिक फिलहाल लिखने की जरुरत नहीं है। आप अपने दिमागों में दीमक न लगने दें।
संत रविदास जी और उनके गुरु ऋषि वाल्मीकि जी और मानवता के प्रथम उद्घोषक भगवान बुद्ध को नमन करता हुआ मैं अपनी बात यहीं संपन्न करता हूं।
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जय भीम
निखिल सबलानिया
Nikhil Sablania
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