श्रम का शाब्दिक अर्थ है मेहनत। हम सब अपने जीवन में अपने जीने के साधन जुटाने के लिए जो मेहनत करते हैं उसे श्रम कहते हैं। अपना घर संभालने के लिए जो मेहनत करते हैं वह भी श्रम है। अंग्रेजी में इसे लेबर बोलते हैं। अब जरा इन प्रश्नों को देखते हैं। क्या आपके पास इनके उत्तर हैं?
जब हम पैसा कमाने के लिए जाते हैं तो अपना श्रम किसे देते हैं?
श्रम आर्थिक व्यवस्था में एक उत्पादन शक्ति कैसे बन जाता है?
कैसे श्रम एक ऐसी शक्ति बन जाता है जो उत्पादन बहुत अधिक बढ़ा देता है?
क्या एक व्यक्ति के श्रम का देश की संपत्ति से सीधा संबंध है?
एक महान विद्वान ने क्यों श्रम को, ‘राष्ट्रों की मिल्कियत’ कहा?
आपको यदि यह प्रश्न जटिल लगते हैं तो इन साधारण सवालों के जवाब दीजिए :
क्यों एक फैक्ट्री में काम करने वाले हजारों लोग एक घर भी नहीं बना पाते पर फैक्ट्री का मलिक एक के बाद एक मिल्कियत बनाता चला जाता है?
क्यों एक के बाद एक घरेलू और लघु उद्योग खत्म होते जा रहे हैं?
क्या आप जो शिक्षा ले रहे हैं वह रोजगार देने वाली या बेरोजगारी बढ़ाने वाली है?
मुझे उम्मीद है कि आप इन प्रश्नो के जो भी जवाब सोच रहे हैं वे असली जवाबों से दूर हैं।
आपको अंततः यह समझना है कि बिना सही अर्थव्यवस्था के सही ज्ञान के जिंदगी में आगे न बढ़े। पर सही ज्ञान को सदा दबा दिया जाता है। यह काम स्वार्थी लोग करते हैं।
ऐसे ही सही ज्ञान को आप तक ला रहे हैं निखिल सबलानिया। इन्होंने कार्ल मार्क्स के बताए, श्रम के विभाजन, के सिद्धांत को न केवल जनमानस की भाषा में सरल हिंदी में अनुवादित ही किया है, बल्कि उसे और अच्छे से समझाने के लिए उसकी व्याख्या (सरल भाषा में अलग से समझाना) भी की है। लगभग देढ़ सौ वर्षों से यह ज्ञान हिंदी भाषा वालों से अछूता था, पर अब नहीं रहेगा। समाज के प्रत्येक आदमी को देश की अर्थव्यवस्था और देश की मिल्कियत में अपने योगदान को जानने के लिए इस पुस्तक को जरूर पढ़ना चाहिए।
निखिल सबलानिया का मानना है कि ज्ञान कोई बड़े शिक्षा संस्थानों में कैद करने की वस्तु नहीं है कि जिस पर चंद लोगों का अधिकार हो। सही विद्वानों का सही ज्ञान सभी लोगों तक पहुंचना चाहिए। उसके बाद ही यह सही निर्णय लिया जा सकता है कि कौनसी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था सही है। क्योंकि ये व्यवस्थाएं ही सभी को प्रभावित करती हैं और समस्याएं भी हैं और समाधान भी।
इन्हीं उद्देश्यों से अक्टूबर 2024 में पुस्तक, श्रम का विभाजन, का प्रकाशन किया जा रहा है। यदि आप इस सार्थक पुस्तक को प्रथम संस्करण में ही प्राप्त करना चाहते हैं तो नीचे दिए लिंक से ऑर्डर करें। वर्षों की मेहनत के बाद ही यह पुस्तक तैयार करने का सामर्थ हुआ है। इसे तुरंत अपने लिए संरक्षित करें। पुस्तक की डिलीवरी अक्टूबर के अंत तक होगी।