पढ़ो पढ़ाओ डॉ, आंबेडकर जी को – पे बैक टू सोसाइटी
23 सितम्बर संकल्प दिवस; 14 अक्टूबर, धम्मचक्कप्पवत्तन दिवस, 26 नवंबर संविधान दिवस और 6 दिसंबर डॉ. भीमराव आंबेडकर महापरिनिर्वण दिवस पर डाॅ. आंबेडकर जी की पुस्तकें – जाति का संहार (एनाहिलेश ऑफ कास्ट) और भारत में जातियाँ – एक साथ – सौ पुस्तकें मात्र 15000 रूपये में जल्दी ऑर्डर करें और अपनी प्रतियां सुरक्षित करें। यह छूट केवल 25 सितंबर 2024 तक। पुस्तक के बारे में अधिक जानने के लिए नीचे दिए गए लेख को पढ़ें।
डॉ. आंबेडकर ने 1936 में आर्य समाज के जाति-पाति तोड़क मंडल लाहौर के वार्षिक अधिवेशन में दिए जाने वाले लिखित भाषण में जातिभेद के डंक को समाप्त करने के लिए अन्तर्जातीय विवाह के कानून तथा जाति और वर्ण व्यवस्था से संबंधित हिन्दू धार्मिक कानूनों एवं मान्यताओं पर चोट करने का आह्वान किया। यह भाषण आयोजकों से मतभेद हो जाने के कारण नहीं दिया गया। बाद में यह भाषण किताब के रूप में आई। इस लेख में जाति व्यवस्था के दुष्प्रभावों और उसके उन्मूलन के उपायों पर गम्भीर चर्चा की गई है। प्रख्यात समाजवादी चिंतक मधु लिमये ने अपनी पुस्तक ‘डॉ. आंबेडकर : एक चिंतन’ के पृष्ठ 18 में स्पष्ट लिखते हैं कि “यह भाषण जाति व्यवस्था पर डॉ. आंबेडकर की सबसे प्रभावशाली कृति है। यह निर्मम तर्क और युक्ति पर आधारित है। तथापि इसमें इतनी आग है कि इसकी तुलना कार्ल मार्क्स और एंगेल्स द्वारा लिखित कम्युनिस्ट मैनिफैस्टो से ही की जा सकती है। हम भारतीयों के लिए तो यह कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो से भी अधिक प्रसांगिक है।” उन्होंने आगे कहा कि, “जो भी भारतीय यह चाहता है कि उसके देशबंधुओं को न्याय मिले और यह देश महान और मजबूत बने वह असमानता के इस सशक्त आरोपपत्र की उपेक्षा नहीं कर सकता है। मैं इस महान घोषणापत्र और इसके लेखक के प्रति अत्यन्त आदरपूर्वक नतमस्तक हूं। यह करुणापूरित मन का आक्रंदन है। इसमें वैज्ञानिक विश्लेषण के साथ-साथ कर्तव्य का आह्वान भी है। ऐसी सामाजिक क्रान्ति का आह्वान जो भारत के इतिहास में कभी नहीं हुई।“ (पुस्तक के बारे में यह बातें इं. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी पुस्तक, जगजीवन राम और उनका नेतृत्व’, में लिखी हैं)
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